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गांव मसारी बना कीचड़ केंद्र रास्ते बने कीचड़ का दरिया

अरूआ वाले रास्ते की कहानी ,वर्षों पुरानी

रास्ते ही नहीं तो ,क्यों करे किसी की जय जय कार ,हमारी समस्या कब दूर करेगी सरकार,,,

 

 

अलवर के उपखंड कठूमर के गांव मसारी में आम रास्ता जो कीचड़ से इतना भयानक बन गया है जिसमें विद्यालय जाने वाले बच्चे निकलने से पूर्व ईश्वर से ये प्रार्थना करते हैं कि हम आज सुरक्षित पहुंच जाएं ,रोजाना आवागमन करने वाले स्त्री पुरुष खेत खलियान को जाने से पूर्व घर से ऐसे सावधान होकर निकलते है जैसे युद्ध भूमि में कोई वीर योद्धा,आप को बता दें ये कीचड़ पिछले कई सालों से इस तरह बरकरार बना हुआ है जिसमें मनुष्य समुदाय एवं सभी प्रकार के वाहनों के लिए कब अप्रिय घटना का कारण बन जाए कोई पता नहीं आप को बता दें पूछताछ के दौरान ग्रामीणों ने बताया कि हम इसकी सूचना पंच सरपंच एवं शासन प्रशासन को मौखिक रूप से दे चुके है परंतु एक खाली आश्वासन के अलावा कुछ भी निस्तारण नहीं हो पाया है इस मौके मसारी ग्राम के लक्ष्मण टेंट,वाले महेश शर्मा,बबली प्रेम भगत,गुड्डी,भगत,तारा कुमार, शिब्बो डॉक्टर,रामू, नरेंद्र,मुकेश,कल्ली भगत,सुभाष , सुरेश शर्मा ब्रजेश शर्मा,जगमोहन शर्मा,एवं विश्राम शर्मा ने बताया कि हमने काफी बार इस रास्ते की समस्या को लेकर ग्राम पंचायत स्तर पर बात रखी परंतु इस बात को नजरंदाज कर दिया जाता है आप को बता दें इस बात से नाराजगी जताते हुए कहा कि यदि जल्द ही इस रास्ते को सही करवाकर सड़क ,ख़रंजा जो भी व्यवस्था उचित और अनुमति प्रदान करने योग्य हो,अगर नहीं कराई गई तो इस बात को विधानसभा तक अग्रेषित किया जाएगा,जन साधारण का कहना है कि इस रास्ते को पार करने में कई ग्रहणियों के फिसलकर हाथ पैर टूट चुके हैं और आज भी इसी आधुनिक समय में हम इस मार्ग के कारण आदिवासी जैसा जीवन व्यतीत कर रहे हैं इस के अलावा प्रार्थी लोगों ने आक्रोश व्यक्त करते हुए कहा कि क्या हम केवल एक मतदान तक ही सीमित रह गए हैं क्या हमारा प्रयोग सरकार केवल एक मतदान तक ही उपयोगी समझती है उसके बाद हमारा कोई बजूद नहीं है आप को बता दें जिन खेत खलियान जिस ग्रामीण परिवेश के कारण भारत देश कृषि प्रदान देश कहलाता है आज ऐसा लगता है कि आज भारत कृषि प्रदान नहीं एक कुर्सी प्रदान देश बन गया है आज कुर्सी की भूख देश प्रदेश का स्वरूप ही बदल चुकी है क्योंकि जो हालात ग्रामीण जनता जनार्दन के देखने को मिल रहे हैं उसके उपरांत ऐसा लग रहा है कि जिस राष्ट की नींव ही जब खोखली होती जा रही है तो उस जर्जर नीम पर ये नारा कैसे सार्थक समझा जा सकता है सबका विकास सबका विश्वास राजस्थान हो या भारत वर्ष जब गांव के भोले भाले लोग ही टूट चुके होंगे क्योंकि जिन खेती खलियान पर राष्ट की नींव रखी गई है वो गांव के रास्ते ही इस तरह कीचड़ का दरिया बन रहे हैं आप को बता दें ये बात गांव मसारी के अलावा पूरे कठूमर विधानसभा क्षेत्र की है कहने को तो राजस्थान की ऐतिहासिक विधानसभा में सम्मिलित है परंतु जब बात रास्ते की अति आती है तो किसी गांव में ग्रामीण क्षेत्र संतुष्ट नहीं है और आप को बता दें जब जब किसी राजनेता के भाषण की शुरुआत होती है तो सर्व प्रथम गांव के लोगों के हित की बात कही जाती है क्योंकि किताबों में लिखने के लिए भारत कृषि प्रदान देश है परंतु जब बात विकास कार्यों की आती है तो याद कुर्सी की आती हैं

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